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Bhaghi 4
कहानी शेर सिंह राणा की
1 कौन है शेर सिंह राणा?
2 कैसे गए afganistan?
Bhaghi 4 की कहानी की बात करे आज हम एक ऐसे सख्श के बारे मे बात करते है जो real मे बाघी है।
उनका नाम है शेर सिंह राणा।
“वो सबसे खतरनाक यात्रा पर गए, भारत के 800 साल पुराने गौरव- पृथ्वीराज चौहान की अस्थियां वापस लाने के लिए. देखिए एक असाधारण व्यक्ति की वास्तविक कहानी.”
बात 1990 की, जब उतराखण्ड में शेर सिंह राणा उर्फ पंकज सिंह (बचपन का नाम) स्कूल मे पढ़ रहे थे, sher singh स्कूल के दिनों मे अपने बेबाक अंदाज़ वाले राजपूत थे, जब वह इतिहास पढ़ते तो, मुगलो के जुल्म सुन कर उनका खून खोलने लगता, वे मुगलो को कायर कहते थे ।
वह राजपूतो को वीर मानते थे, और एक दिन उन्होंने अपने साथ बैठे एक दोस्त को इस कारण पिट दिया क्योंकी उसने मुगलो को महान कहा था, फिर उन्हे स्कूल से निकाल दिया, वह दूसरे स्कूल मे भी भर्ती हुए, लेकिन उन्होंने उस स्कूल को इसलिए छोड़ दिया, क्योंकि वहाँ मुगलों का पाठ पढ़ाया जाता था।
फिर उनकी शिक्षा घर पर ही होने लगी।
शेर सिंह राणा बचपन से देशभक्त, अपने पूर्वजो को पूजने वालो मे से थे। उनके लिए उनके पूर्वज ही उनके भगवान थे।
शेर सिंह का गांव बमियाँ,जहां के ठाकुरो ने किसी बात का बदला लेने खातर फुलन देवी के साथ कुकृत्य किया गया था. कुछ समय बाद, खुद बदला लेने के लिए फूलन देवी ने गांव के 22 ठाकुरों को लाइन से खड़ा किया और गोली मार दी. इन ठाकुरों मे शेर सिंह के chacha भी थे, इस हत्याकांड के बाद फूलन की छवि एक खूंखार डकैत की हो गई । जिसे बाद फूलन को गिरफ्तार किया गया, और पूरी सजा काटने के बाद छोड़े जाने पर राजनीति मे सक्रिय हो गयी, और संसद भी बनी। वह अपनी राजनीतिक जीवन जी रही थी, उसे पता ही नही था, की यह उसका अंतिम होगा।
कई सालों बाद शेर सिंह राणा ने भी अपने पुरखो की मौत का बदला लेने के लिए फूलन देवी के घर पहुंचा. वो वहां फूलन की पार्टी एकलव्य सेना में शामिल होने के बहाने गया था. फूलन ने उसे प्रसाद के तौर पर बनी खीर खिलाई. इसके बाद वो वहां से निकल गया. दोपहर को फूलन अपने दिल्ली वाले बंगले के गेट पर खड़ी थीं. तभी तीन नक़ाबपोश आए और फूलन पर ताबड़तोड़ गोलियां चलाईं. इसके बाद वो मारुति 800 में बैठकर भाग गए. फूलन को दिल्ली के अस्पताल ले ज़ाया गया. जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया. इन तीन नक़ाबपोशों में से एक था शेर सिंह राणा. उसने फूलन देवी को जान से मारने की बात कबूल भी की. वजह पूछने पर शेर सिंह राणा ने बताया कि उसने ठाकुरों के सामूहिक हत्याकांड का बदला लिया था।
इसके बाद शेर सिंह को आजीवन समय के लिए तिहाड़ जेल हो जाती है ।
राणा अपनी जिंदगी को जेल मे तो बिल्कुल नही गवाना चाहता था, वह एक राजपूत था, बहादुरी से लड़कर मरना चाहता था, वह तो बचपन से बहादुर था , भला चुपचाप कैसे बैठ सकता था, और वह किताबे पढ़ने लगा, और एक डायरी लिखने लगा, तब उसने वीर पृथ्वीराज चौहान की जीवनी पढ़ी, और उसने सुना था की पृथ्वीराज चौहान की अस्थियाँ अभी भी afganistan में बेअदब तरीके से दफन है, उसे यह बात बिल्कुल भी गंवारा न लगी, एक भारत के वीर को समान तक मिल सका,जो अपने धरती के लिए लड़ा और गजनी के सामने सिर ना झुकाया, अब उसने अस्थियों को भारत लाने की ठानी, और वह जेल में रहकर प्लेन बनाने लगा, की वह सुरक्षित अपने देश भी पहुँच जाए।
वह एक दोस्त प्रदीप ठाकुर, जो वहाँ का गैंगस्टर था, उसका वकील होने का बहाना बनाकर मिलने आता, और उसके साथ सारी बातें discuss करता , वह एक योजना बना रहे थे, तिहाड़ से भागने की।
वह सारी गतिविधियां note करते, और योजना बनाते।
लगभग तीन साल पश्चात2004 को राणा ने उस प्लान को एग्ज़ीक्यूट किया गया. पुलिस की वर्दी पहनकर प्रदीप सुबह 7 बजे जेल पहुंचा. प्रदीप ने एक फ़ॉर्म भरा और एक जाली वॉरंट दिखाया. इसके बाद उसने शेर सिंह राणा को हथकड़ी पहनाई और जेल से बाहर ले गया. इतना ही नहीं, उसने जेल से 40 रुपए भी लिए. जो क़ैदी को बाहर ले जाने पर खाना खाने के लिए मिलते थे, फिल्मी अंदाज में तिहाड़ जेल से फरार हो गये। तिहाड़ जैसी अतिसुरक्षित जेल से किसी कैदी का फरार हो जाना अपने आप में बहुत बड़ी बात थी
राणा अपने दोस्त प्रदीप की मदद से तिहाड़ जेल से फरार हो गया,प्रदीप ने पुलिस के वेश में राणा को हरिद्वार ले जाने का नाटक किया. और बाद में राणा मुरादाबाद गया और एक होटल में चेक-इन किया। राणा ने फिर उनके रिश्तेदारों से संपर्क किया जिन्होंने उन्हें संदीप के माध्यम से 1 लाख रुपये भेज दिये.फिर राणा वहाँ से रांची चले गए और उन्होंने अपने मित्र विजय कुमार के नाम से पासपोर्ट के लिए आवेदन किया. वहाँ के लॉकल लोगो, नेताओ परिवार ने भी राणा का साथ दिया, क्योंकि राणा के मंसूबे नेक थे, वह भारत के गौरव पृथ्वीराज चौहान की भारत मे समाधि बनाना चाहते थे, जिसके वह हकदार थे, उन्हे पुरा आदर मिले।
पासपोर्ट के लिए दो महीने के इंतजार के दौरान, राणा वाराणसी गया, जहां उन्होंने अपने फाइनेंसर कैलाश ठाकुर से मुलाकात की, जो तब स्थानीय जेल में बंद थे। राणा इसके बाद कोलकाता गए, जहां उन्होंने तीन महीने का बांग्लादेश वीजा प्राप्त किया। राणा ने विजय के रूप में प्रस्तुत होकर किराए का एक घर लिया और वहीं रहने लगे, बांग्लादेश से फरार होने के बाद, राणा ₹16,000 में एक सैटेलाइट फोन खरीदा ताकि वह बिना ट्रैक किए अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से संपर्क कर सके।ईऔर फिर दुबई से अफगानिस्तान की यात्रा की, उन्हें व्यक्तिगत खर्च के रूप में लगभग ₹15,000 से ₹20,000 प्रति माह मिलते रहते थे।
और इसी बीच उन्हे पॉलीस से भी बचना होता था, लेकिन वो बहुत बहादुर थे। अपनी योजना के अनुसार अंजाम देते गए।
अब राणा के लिए afganistan दुर नही था , अब उनकी कई साल की मेहनत और योजना को अंजाम देने का समय आ गया, वह पूरी तरह से तैयार थे ।
उन्होंने अपने प्लेन पर काम करना शुरू किया और छुपते छुपाते,
ऐसा करते करते राणा अफगानिस्तान पहुँच गए ,वह अपनी मंजिल के बहुत करीब थे, जहाँ समाधि थी, वहा पास ही एक मस्चिद भी थी, वह एक मुल्सिम का रूप बनाकर वहाँ रेकी करने लगे, रोज़ मस्चिद जाते और वहाँ आने जाने का पूरा ख्याल रखते, ध्यान रखते।
फोटो, वीडियो बनाते और वहाँ अपनी योजना बनाते ,
उन पर किसी का शक भी नही गया था।
रात को उस जगह पर आते और ख़ुदाइ करते, थोड़ी थोडी मिट्टी निकालकर खुदाई करते, और जब समय जाने का होता तब वापस भी देते, और साथ ही वीडियो भी रिकॉर्ड करते ,
अब उनके लिए यह सब खेल लगने लगा, लेकिन खतरा टला नही था, वह पहुँच तो गए आसानी से, लेकिन उन्हे यहाँ से बाहर भी निकलना था, भारत जाकर खुद को साबित भी करना था, जिस असम्भव काम को करने के लिए यहाँ आये थे । जिस को लेकर लोगो से भरोसा जीता, वह भरोसा कायम भी तो करना था, यह उनके लिए एक कठिन परीक्षा थी, जिसे उन्हे किसी भी कीमत में पास करनी थी। और अंत मे वह सफल होते है ।
वह 11वीं शताब्दी के हिंदू राजपूत शासक पृथ्वीराज चौहान के अवशेष लाए,उन्होंने इसका 40 मिनट का वीडियो बनाया और इसे यूट्यूब पर अपलोड कर दिया था , इस दावे की पुष्टि के लिए ।
उन्होंने अपना वादा पूरा किया, जो कुछ साल पहले खुद से किया था।
फिर राणा ने पृथ्वीराज सिंह चौहान की समाधि की थोड़ी मिट्टी इकट्ठी की. भारत लौटकर उसने उस मिट्टी को इटावा भेजा और वहां के लोकल नेताओं की मदद से एक इवेंट ऑर्गनाइज़ किया ।
2006 में गिरफ़्तारी के बाद पुलिस ने शेर सिंह राणा को दोबारा जेल में डाला.
साल 2012 में शेर सिंह राणा ने जेल से ही यूपी चुनाव का पर्चा भरा. साल 2014 में कोर्ट ने उसे फूलन देवी हत्याकांड में दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई. 2016 में मामला हाई कोर्ट पहुंचा जहां शेर सिंह राणा को बेल मिल गई. ठाकुरों की हत्या का बदला लेने के चलते ठाकुरों के बीच उसकी इमेज हीरो वाली बन गई. पृथ्वीराज चौहान की अस्थियां वापस लाने वाली कहानी की मदद से भी उसे खूब माइलेज मिली.
राणाजी को उनकी बहादुरी और बुद्धिमत्ता के कारण सरकार ने उसे न्याय भी दिया और उनकी सजा माफ कर दी ।
अब राणा अपनी पार्टी बनाकर जनता की सेवा कर रहे है। और आज भी चर्चा मे रहते है और जनता के प्रिय भी है।
आशा करते थी कहानी आपको अच्छी लगी। कहानी मे एक्शन, रोमांच, बहादुर व्यक्तित्व भरपुर है, दर्शकों को बांधे रखेगा।
और आप भी हमें comment करके बताइये की कहानी में और भी क्या पॉइंट्स आ सकते थी। हम आपके comments चेक जरूर करेंगे ।
तब तक आप हंसते रहिये और मजे मेंं रहिये।