Karan-Arjun 2

क्या मरने के बाद भी दिमाग करता है kaam?

 

कोसीकला गांव में रहने वाले भोलेनाथ जैन के बेटे, निर्मल की मृत्यु 1950 में चिकन पॉक्स की वजह से हो गयी थी. एक साल बाद, 1951 में छाता गांव में रहने वाले बी.एल. वार्श्नेय के घर एक बेटा पैदा हुआ जिसका नाम प्रकाश रखा गया. प्रकाश जब साढ़े चार साल का हुआ तो अचानक ही सबको कहने लगा कि वो कोसीकला गांव में रहता था और उसका असली नाम निर्मल है. प्रकाश ने ये भी कहा कि उसे अपने पुराने घर जाना है.

प्रकाश को भरोसा दिलाने के लिए उसका कोसीकला गांव से कोई वास्ता नहीं है, उसके चाचा उसे कोसीकला गांव ले गए. वहां पहुंचते ही प्रकाश की पिछले जन्म की यादें वापस आने लगीं, लेकिन दुर्भाग्यवश वो अपने पिता, भोलेनाथ जैन से नहीं मिल पाया. फिर 1961 में, किसी काम के चलते, भोलेनाथ जैन छाता गांव आये जहां उन्हें पता चला कि प्रकाश नाम का लड़का अपना नाम निर्मल और गांव का नाम कोसीकला बताता है. भोलेनाथ ये गुत्थी सुलझाने वार्श्नेय परिवार के घर पहुंचे तो प्रकाश ने उन्हें देखते ही पहचान लिया. फिर, प्रकाश ने कई ऐसी बातें भोलेनाथ को बतायीं, जो सिर्फ़ निर्मल और उसके पिता, भोलेनाथ जैन को ही पता थीं.

जैन परिवार में भोलेनाथ की शादी इस उरव के साथ की गई थी वो अपने परिवार को एक वंशज देंगे। जो उनके बाकी दो भाई नहीं दे पाए। उनके दो बड़े भाई लेकिन उनके परिवार ने हर जगह मठ टेका और हर मंदिर गए लेकिन भगवान ने उनकी नहीं सुनी। और उन्हें बेटा नहीं हुआ। क्योंकि भोलेनाथ उन सब में सबसे छोटा था। इसकी ये शादी शादी भी सबसे आखिरी में हुई। उसकी शादी हुई पास की ही गांव की एक लड़की से जिसका नाम था काशी बाई।

काशी बाई और भोलेनाथ ने फिर से वही हर मंदिर हर भगवान के आगे जा कर अर्ज़ी लगाई कि उनके कुल का वंशज मिल जाए। और आखिरी इस बार भगवान ने सुन ही ली और उनके घर में उनका चिराग यानी उनका बेटा हुआ। और इस बेटे का नाम रखा गया निर्मल। निर्मल सबकी आंखों का तारा था। उसकी दादी इस्तेमाल करेंगी जैसे आंखों से ओझल ही नहीं होने देती थीं। निर्मल की हर एक मांग पूरी की जाती थी। दादी कहती थी हमारा पोता अपने नाम पर ही गया है। उसका मन सबसे साफ और सबके लिए आधार और सम्मान है

लेकिन शायद जैन परिवार की ये खुशियां बहुत दिनों की मेहमान नहीं था। जब निर्मल 21 वर्ष का हुआ यूज चिकनपॉक्स हो गया था। हर वैद्य और डॉक्टर को दिखाया गया लेकिन निर्मल तो जैसे अब हार ही मान चुका था। ना उसका मन साथ दे रहा था उसका इस बीमारी से लड़ाई में और ना ही शरीर है। अगर कोई उसके साथ था तो वो तो उसका परिवार। दादी तो जैसे दिनभर ही मंदिर के सामने बैठी रहती थी कि भगवान मुझ बुधिया को क्यों रखा है इस धरती पर मुझे बुला लो लेकिन मेरे nirmal को ठीक कर दो

पर हर प्रार्थना उस रात हार गई जिसके बाद निर्मल के जीवन में कभी सवेरा नहीं हुआ। फिर कभी निर्मल ने अपनी दादी को परामर्श नहीं किया। दादी ये दुख बरदाश्त ना कर पायीं और उन्हें भी अगर रात अपने प्राण त्याग दिए और वो चल बसी। जैन परिवार तो जैसे नास्ते-नबू होकर रह गया था।एक साल बाद, 1951 में छाता गांव में रहने वाले बी.एल. वार्श्नेय के घर एक बेटा पैदा हुआ जिसका नाम प्रकाश रखा गया. प्रकाश जब साढ़े चार साल का हुआ तो अचानक ही सबको कहने लगा कि वो कोसीकला गांव में रहता था और उसका असली नाम निर्मल है. प्रकाश ने ये भी कहा कि उसे अपने पुराने घर जाना है.

प्रकाश की बातें तो पहले सबको बचकानी लगती थी और उसको कोई भी गंभीरता से नहीं लेता था लेकिन फिर एक दिन प्रकाश को उन पर भरोसा करने वालों के लिए उनके कोसीकला गांव से कोई रास्ता नहीं है, उनके अंकल उन्हें कोसीकला गांव ले गए। वहां के जीवाश्म प्रकाश की पिछले जन्म की यादें वापस आने लगीं, लेकिन दुर्भाग्यवश वो अपने पिता, भोलेनाथ जैन से नहीं मिल पाया. फिर 1961 में, किसी काम के चलते, भोलेनाथ जैन छाता गांव आये जहां उन्हें पता चला कि प्रकाश नाम का लड़का अपना नाम निर्मल और गांव का नाम कोसीकला बताता है. भोलेनाथ ये गुत्थी सुलझाने वार्श्नेय परिवार के घर पहुंचे तो प्रकाश ने उन्हें देखते ही पहचान लिया. फिर, प्रकाश ने कई ऐसी बातें भोलेनाथ को बतायीं, जो सिर्फ़ निर्मल और उसके पिता, भोलेनाथ जैन को ही पता थीं. प्रकाश ने ये भी बताया कि उनके पिता की दुकान के दरवाजे काधीश मंदिर के सामने था | इस समय तक वो 6 साल का हो गया और उसकी माँ बाप उसकी बातों से परेशान हो गए थे | लड़के ने तो अपनी मौत का विस्तृत विवरण भी सब को दे दिया था |उन्होनें अपने चिकित्सक को ये बात बताई तो वह हैरान था कि इतना छोटा बच्चा इन जटिल चिकित्सा मांगों के बारे में कैसे जनता है |

prakash का दावा है कि इसके बाद वो 1 साल तक भटकता रहा। इस दौरान उसने कई बार अलग-अलग घरों में दाखिल होने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहा। आखिरकार गांव के इस घर में उसे जगह मिली। तीन साल की उम्र होने पर prakash को बीते जन्‍म के बारे में सारी बातें याद आ गईं। पिछले जन्म में उसका नाम nirmal था और मौत के बाद 12 दिन बाद तक वो अपने घर पर ही रहा। नीम के पेड़ पर बैठा था। वहां 12 दिन बाद हवा उड़ा ले गई और यहां-वहां भटकता रहा। फिर इस गांव में जन्‍म हुआ।

prakash के घरवालों के मुताबिक तीन साल तक सब ठीक था। फिर उसे पूर्व जन्‍म की कुछ-कुछ धुंधली यादें आने लगीं। उसने घरवालों से बोला कि उसका घर यहां नहीं बल्कि कोसीकला गांव में है। घरवाले हैरान परेशान हो गए। बच्चे को बार-बार समझाने की कोशिश की। राहुल के घरवालों के मुताबिक जब उसे अपना पिछला जन्म याद आया तो वो sabse  मिलने की जिद करने लगा। पहले तो किसी को यकीन नहीं हुआ।

पुर्नजन्म में रिश्तों को निभाते हुए भाई अपनी पूर्व जन्म की बहन से राखी की परंपरा का पिछले 5 वर्षों से निर्वहन कर रहा है। केवल राखी परंपरा ही नहीं बल्कि रिश्तेदारी की अन्य सभी कामों में वह पूर्व जन्म की भांति ही शरीक हो रहा है। राखी के पवित्र त्यौहार पर ग्राम कोसीकला  के Prakash ने  आकर अपने पिछले जन्म की बहन मालती गंगवार से राखी बंधवाई।

भारतीय दर्शनशास्त्रों के अनुसार प्राचीन काल में ऋषियों ने स्वयं की खोज की और पाया कि स्वयं शरीर नहीं है परंतु शरीर के अंदर स्थित आत्मा-जो निराकार है-उनका मूल स्वरूप है। आत्मा को जानने की इस प्रक्रिया को आत्मसाक्षात्कार के नाम से जाना जाता है। आत्मा के साक्षात्कार हेतु योगज्ञानभक्ति आदि पद्धतियाँ प्रचलित हैं जिसका आविर्भाव प्राचीन काल में हुआ है। ऋषियों ने स्वयं को जानकर अपने जन्मांतर के ज्ञान की भी प्राप्ति की और पाया कि उनके कई जन्म थे। स्वयं का मूल स्वरूप आत्मा जिसकी कभी मृत्यु नहीं होती; ये पहले था, आज है और कल भी रहेगा। शरीर के मृत्यु के बाद जीवात्मा पुनः जन्म धारण करता है और ये चक्र चलता ही रहता है।

पुनर्जन्म का कारण सांसारिक पदार्थों में आसक्ति आदि है। जब व्यक्ति साधना के बल पर सांसारिक दुविधाओं से मुक्त होकर स्वयं को जान लेता है तब जन्म की प्रक्रिया से भी मुक्ति पा लेता है। फिर भी अपनी स्वेच्छा से जन्म धारण कर सकता है। मूल रूप से सभी को अपने पूर्व के जन्मों की विस्मृति हो जाती है। योग आदि क्रियाओं से आत्मा को जानकर ध्यान में पूर्व के जन्मों के ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है। ज्ञानी पुरुष दूसरों के जन्मांतर के विषय में भी बता सकते हैं अतः ऐसे सदगुरु से भी पूर्वजन्म के ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है। पुराण आदि में भी जन्म और पुनर्जन्मों का उल्लेख है जिससे अमुक व्यक्तियों के पूर्वजन्म के विषय में जानकारी मिलती है। कभी बाल्यकाल में किसी बालक को पूर्वजन्म का ज्ञान होने के प्रसंग भी सामने आए हैं।

जिसको भाग्य कहे या दुर्भाग्य कहां से आया। इस जन्म में तो दोनों ने गलत कार्य किये नही, यानी कर्म से, कर्म कभी तो किये ही होंगे। तब दृष्टि जाती है कि पिछले जन्म में कुछ किया होगा। यही से मेरा मानना है कि ऋषि मुनियों ने पिछले जन्म का विचार विकसित किया होगा।

कहते है कि सिर्फ मनुष्य जन्म ही विवेक से कार्य करने के लिये है वाकी अन्य योनियाँ जैसे पक्षी, जानवर में तो आत्मा सिर्फ भोग ही करती है फिर एक मनुष्य जन्म में तो व्यक्ति अच्छे कर्म करके अपनी पारी पूरी नही कर सकता तो कई जन्म ले कर ही कर्मों का फल भोगते भोगते निष्काम कर्म कर केअपनी पारी पूरी करता है। जिसको भाग्य कहे या दुर्भाग्य कहां से आया। इस जन्म में तो दोनों ने गलत कार्य किये नही, यानी कर्म से, कर्म कभी तो किये ही होंगे। तब दृष्टि जाती है कि पिछले जन्म में कुछ किया होगा। यही से मेरा मानना है कि ऋषि मुनियों ने पिछले जन्म का विचार विकसित किया होगा।

कहते है कि सिर्फ मनुष्य जन्म ही विवेक से कार्य करने के लिये है वाकी अन्य योनियाँ जैसे पक्षी, जानवर में तो आत्मा सिर्फ भोग ही करती है फिर एक मनुष्य जन्म में तो व्यक्ति अच्छे कर्म करके अपनी पारी पूरी नही कर सकता तो कई जन्म ले कर ही कर्मों का फल भोगते भोगते निष्काम कर्म कर केअपनी पारी पूरी करता है। पुनर्जन्म के बाद वनस्पति जाति, पशु जाति, पक्षी जाति और मनुष्य जाति में व्यक्ति को जन्म मिलता है. कर्म के अनुसार आत्मा को जिसका शरीर प्राप्त होता है वह उसकी जाति कहलाती है. अगर किसी ने बुरे कर्म किए हैं तो यह निर्धारित नहीं है कि उसे किस जाति में पुनर्जन्म मिलेगा या पुनर्जन्म मिलेगा भी या नहीं| पुनर्जन्म एक भारतीय सिद्धांत है जिसमें जीवात्मा के जन्म और मृत्यु के बाद पुनर्जन्म की मान्यता को स्थापित किया गया है। विश्व के सब से प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद से लेकर वेद, दर्शनशास्त्र, पुराण, गीता, योग आदि ग्रंथों में पूर्वजन्म की मान्यता का प्रतिपादन किया गया है।

 

 

 

 

 

 

हिंदू धर्म 7 जन्मों की अवधारणा में विश्वास रखता है। यही कारण हैं कि विवाह समारोह में शादी के दौरान होनेवाली रस्म सप्तपदी और सात वचनों को सात जन्मों के रिश्ते के रूप में देखा जाता है। हालांकि विज्ञान ने अभी तक सात जन्मों की बात पर मुहर नहीं लगाई है। लेकिन समय-समय पर समाज के बीच से ऐसे आश्चर्य सामने आते रहते हैं, जब इस बात पर यकीन करना ही पड़ता है कि अगले जन्म और पिछले जन्म की अवधारणा एकदम सच है।Aise hi ek movie aayi thi 13 january 1995 mein naam tha karan arjun. Aur is movie ke director the Rakesh Roshan. Is movie mein unhone punarjanmi do bhaiyon ki kahaani hi dikhaayii thi. Ab itne saalon baad phir se iske dusre part banne ki baat uth rahi hai. jaate jaate hum aapko ek ar zaruri baat btanaa chahte hai… ki Agar aap bhi Cinema ki duniya se judna chahte hai aur kaam karna chahte hai toh description box me diye hue job link pr click kare aur iss opportunity ka bharpur fayda uthaye!!!

 

Description-

Durga marries into a wealthy family only to have her husband brutally murdered by Thakur Durjan Singh, who wants to take control of her family’s legacy. Durga brings up two sons Karan Singh and Arjun Singh on her own; one day when they decide to go against Durjan, they get murdered. In a state of shock and dismay, Durga roams the entire village and prays to the Hindu goddess to return her sons to her. Years later, two young men from different aspects of life enter her life and are all set to take on Durjan but will history repeats itself as in the case of Karan and Arjun?

 

 

 

 

 

 

 

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