वो रविवार की सुबह थी. तारीख थी 31 जुलाई 2022. समय सुबह के 6 बजकर 18 मिनट हो रहें थे. अफगानिस्तान की राजधानी काबुल के आसमान पर अभी सूरज की किरणें छाने की तैयारी कर रही थी. पूरे काबुल के ज़्यादातर लोग ही नींद में थे, लेकिन शहर के आसमान पर सबकी निगाहों से दूर करीब 50 हज़ार फीट की ऊंचाई पर एक अमेरिकन एमक्यू-9 ड्रोन अपने टारगेट के इंतजार में लगातार चक्कर लगा रहा था. ये ड्रोन तो बेशक आसमान में कोई चंद मिनटों से ही उड़ रहा था, लेकिन ये इंतजार पूरे 21 सालों का था.
और आख़िरकार वो घड़ी भी आई, जब टारगेट खुली जगह पर नजर आया. ये जगह थी काबुल के शेरपुर जिले के पॉश इलाके में मौजूद एक इमारत की वो बालकनी, जहां दुनिया के सबसे बडे आतंकी संगठन यानी अल कायदा का चीफ अयमान अल जवाहरी ताजी हवा लेने के इरादे से walk कर रहा था. मगर तभी आसमान से एमक्यू-9 ड्रोन ने तेजधार ब्लेड्स से भरे दो आर-9-एक्स हेलफ़ायर मिसाइल फायर किए और इन मिसाइलों ने जवाहरी को निशाना बना डाला और इसी के साथ पलक झपकते आतंक के सबसे बड़ा आका का खात्मा हो चुका था.
आका, जिसने ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद आज से ठीक 11 साल पहले अल कायदा की कमान संभाली थी और जो लगातार सालों-साल पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे मुल्कों में छुप-छुपा कर अब भी पूरी दुनिया में आतंक एक्सपोर्ट करने में लगा था. लेकिन रविवार की सुबह बेगुनाहों की जान लेनेवाले इस आतंकी सरगना की जिंदगी की आखिरी सुबह साबित हुई. हेलफायर मिसाइलों से निकले ब्लेड्स ने 71 साल के इस आतंकी के जिस्म को छली कर दिया था. और इसी के साथ अमेरिका पर हुए अब तक के सबसे बड़े और सबसे खौफनाक आतंकी हमले यानी 9-11 के करीब 3000 पीड़ितों को इंसाफ मिल गया. क्योंकि ये जवाहरी ही था, जिसने ओसामा बिन लादेन के साथ मिलकर ट्विन टावर और पेंटागन पर हवाई जहाज से हमले की ख़ौफनाक साजिश रची थी.
वैसे जवाहरी सिर्फ 9-11 का गुनहगार ही नहीं था, बल्कि उसने तंजानिया, केन्या जैसे देशों में अमेरिकी दूतावासों पर हुए हमलों समेत और भी कई आतंकी हमलों को अंजाम दिया था. ऐसे में जवाहिरी की मौत के साथ अब ये कहा जा सकता है कि 21 साल बाद ही सही अमेरिका का इंतकाम पूरा हुआ. यही वजह है कि इस ऑपरेशन के पूरा होने के एक दिन बाद अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने कहा ‘इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि इसमें कितना वक्त लगता है, अगर आप हमारे लोगों के लिए खतरा हैं, तो अमेरिका आपको हर हाल में ढूंढ निकालेगा और आपको आपके अंजाम तक पहुंचाएगा, फिर चाहे आप जहां कहीं भी छुपे हों.’
वैसे तो जवाहरी जैसों को मारने का ये मिशन उसी दिन से शुरू हो गया था, जिस दिन इन आतंकियों ने अमेरिका पर हमला किया था, लेकिन इस ऑपरेशन के आखिरी चरण की शुरुआत अब से कोई छह महीने पहले तब शुरू हुई, जब अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने जवाहिरी के मूवमेंट को सही मायने में ट्रैक करना शुरू कर दिया था. अब अमेरिका के पास उसके सेफ हाउस यानी छुपने की जगह, उसके डेली रूटीन, उसके परिवार के एक-एक सदस्य का ब्यौरा आदि सबकुछ था. अपैल महीने में अमेरिकी एजेंसियों को अल जवाहिरी और उसके परिवार के बारे में और भी खुफिया जानकारी मिलने लगी. CiA को पता चला कि जवाहरी अब अपनी पत्नी और बेटियों के साथ काबुल के नए सेफ हाउस में शिफ्ट हो चुका है, जो कभी काबुल में रहे अमेरिकी दूतावास के बेहद करीब मौजूद है.
CIA के मुताबिक जवाहिरी और उसके परिवार के सुरक्षा की जिम्मेदारी दुनिया के एक और बदनाम आतंकी संगठन हक्कानी नेटवर्क के ज़िम्मे थी, जिसके अल कायदा और तालिबान जैसों के साथ बेहद अच्छे ताल्लुकात हैं. वहीं हक्कानी नेटवर्क जिसके आका सिराजुद्दीन हक्कानी के पास इन दिनों अफगानिस्तान के गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी है. ये समझा जाता है कि जवाहिरी इन दिनों जिस मकान में रह रहा था, वो मकान भी किसी और का नहीं बल्कि इसी सिराजुद्दीन हक्कानी के किसी बेहद करीबी गुर्गे का है.
पूरे छह महीने तक CIA और दूसरी अमेरिकी एजेंसियां लगातार इस इमारत में अल जवाहिरी की मौजूदगी को कनफर्म करती रहीं. जासूस लगातार जवाहिरी को इस मकान की बालकनी में महीनों तक घूमते-बैठते चहलकदमी करते देखते रहे और CIA उसके एक-एक दिन के मूवमेंट का पूरा हिसाब किताब मे करती रही. अलग-अलग इंटेलिजेंस agencies से मिल रही जानकारी के आधार पर अमेरिकी जासूसों ने उस मकान का एक छोटा मॉडल भी तैयार किया, जिसमें उन दिनों जवाहरी रह रहा था. ताकि उस मॉडल के जरिए उस मकान में उसकी मौजूदगी और मूवमेंट को अच्छी तरह से समझा जा सके और उसी के मुताबिक हमले की प्लानिंग की जा सके.
वैसे तो अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन को जवाहिरी की मिल रही इन जानकारियों के बारे में पूरे मई और जून महीने तक समय-समय पर लगातार ब्रीफ किया जाता रहा लेकिन ये पहली जुलाई की तारीख थी, जब बाइडेन ने अपने कैबिनेट मेंबर्स के साथ मिलकर सिचुएशन रूम में जवाहिरी की मौत के परवाने पर दस्तखत किए यानी उसे मार गिराने का फाइनल हुक्म दिया. तो बाइडेन ने CIA के इस प्लान की बारीकियों को ना सिर्फ बड़े गौर से समझा, बल्कि उन्होंने अमेरिकी अफसरों से इस प्लान को लेकर कई सवाल भी पूछे. असल में बाइडेन दो बातें तय करना चाहते थे. पहला तो ये कि अमेरिका का ये वार किसी भी कीमत पर खाली ना जाए और दूसरा ये कि जवाहिरी के अलावा इस हमले में उसके परिवार का दूसरा कोई भी मेंबर ना मारा जाए. 25 जुलाई को अफसरों ने अमेरिकी कैबिनेट को हमले की पूरी प्लानिंग का ब्लूपिंट सौंपा.
कहते हैं कि बाइडेन ने इस दौरान एजेंसियों से जवाहिरी को निशाना बनाने के दूसरे तौर तरीकों के बारे में भी पूछा और आखिरकार सर्वसम्मति से यानी सबकी राय से ड्रोन हमले का वो प्लान चुना गया, जो आस-पास के इलाके में कम से कम जानी नुकसान करे और अपने टारगेट को इस तरह पिन प्वाइंट तरीके से हिट करे कि उसके पास बचने की कोई गुंजाइश ही ना हो.
जवाहरी के मरने के बाद कामरान यूसुफ ने ट्वीट कर लिखा था कि, अलकायदा चीफ अयमान जवाहिरी काबुल में अमेरिकी ड्रोन हमले में मारा गया. ऐसा लगता है कि पाकिस्तान इस ऑपरेशन का हिस्सा है क्योंकि ड्रोन स्ट्राइक से 48 घंटे पहले अमेरिका के टॉप जनरल ने पाकिस्तानी सेना के चीफ से बात की थी.
हालांकि, पाकिस्तानी पत्रकार ने इस ड्रोन स्ट्राइक को आतंकवाद के खिलाफ पाकिस्तान की लड़ाई बताया है, मगर हकीकत सब जानते हैं कि जिस तरह हक्कानी नेटवर्क ने काबुल में जवाहिरी को छिपा रखा था उसी तरह पाकिस्तान ने एबटाबाद में ओसामा को पनाह दे रखी थी। तो फिर जवाहिरी को मरवाने में पाकिस्तान का क्या फायदा हो सकता है.
लेकिन कई जानकारियां यह भी आती है कि पाकिस्तान ने पैसे लेकर जवाहिरी से जुड़ी सारी जानकारी अमेरिका को सौंप दी थी. जवाहिरी एक महीने पहले ही पाकिस्तान से अफगानिस्तान गया था. इससे पहले वो पाकिस्तान में ही था. अगर आतंकवाद निरोधी अभियान के तहत जवाहिरी को मरवाना होता तो पाकिस्तान उसे बहुत पहले ही मार चुका होता. मगर इस बार उसके पास अमेरिका से पैसे ऐंठने और अफगानिस्तान में जवाहिरी के मारे जाने से कट्टरपंथियों की नाराजगी से भी बचने का मौका था.
जहां तक अमेरिका के सटीक ऑपरेशन की बात है तो पाकिस्तान में रहने के दौरान पाकिस्तानी सेना को अल-जवाहिरी के हर मूवमेंट की खबर थी. तालिबान के संपर्क में रहने की वजह से भी पाकिस्तानी सेना जानती थी कि अल जवाहिरी कहां रह रहा है. ऐसे में पाकिस्तान एक बार फिर अंजान बनने की कोशिश कर सकता है. कुछ ऐसी ही कोशिश उसने ओसामा बिन लादेन की मौत के वक्त भी की थी. क्योंकि पाकिस्तान के लिए पैसा भी जरूरी है तो वहीं वो अपनी जमीन पर पल रहे आतंकियों को नाराज भी नहीं करना चाहता. बहरहाल अल जवाहिरी की मौत अमेरिका की लिए एक बड़ी जीत है. जिसने 21 सालों से चल रहे बदले को पूरा कर दिया है.
ऐसे ही साजिश और CIA के मिशन की कहानी Kgf-3 में दिखाई जा सकती है. जिसमें CIA ऐसे ही रॉकी जो world का most wanted criminal है, rocky को ढूढ़ने के लिए mission को तैयार किया जा सकता है. आपका इस बारे मे क्या खयाल है, हमे comment में Jarur बताये. हम फिर मिलेंगे एक नई वीडियो के साथ, तब तक खुश रहें और सेफ रहें. Bye
Manisha Jain