प्रयागराज तब इलाहाबाद हुआ करता था. इलाहाबाद में उन दिनों नए कॉलेज बन रहे थे. कहानी सत्तर और अस्सी के दशक के बीच की है। जब इलाहाबाद में माहौल बदलने लगा था. इलाहाबाद शिक्षा के हब के रुप में develop हो रहा था .businesses ban रहे थे. खूब ठेके बंट रहे थे. नए लड़कों में अमीर बनने का चस्का लगना शुरू हो गया था. वो अमीर बनने के लिए कुछ भी करने को उतारू थे. कुछ भी मतलब, कुछ भी. हत्या और अपहरण भी. इलाहाबाद में एक मोहल्ला है चकिया. साल था 1979. इस मोहल्ले का एक लड़का हाई स्कूल में फेल हो गया. उसके पिता इलाहाबाद स्टेशन पर तांगा चलाते थे, लेकिन अमीर बनने का चस्का तो उसे भी था. 17 साल की उम्र में हत्या का आरोप लगा और इसके बाद उसका धंधा चल निकला. खूब रंगदारी वसूली जाने लगी. नाम था अतीक अहमद. फिरोज तांगेवाले का लड़का.
पुराने शहर में उन दिनों चांद बाबा का खौफ हुआ करता था. पुलिस भी चौक और रानीमंडी की तरफ जाने से डरती थी. अगर कोई खाकी वर्दी वाला चला गया तो पिटकर ही वापस आता. उस समय तक चकिया के इस 20-22 साल के लड़के अतीक को ठीक-ठाक गुंडा माना जाने लगा था. पुलिस और नेता दोनों उसे शह दे रहे थे. वे चांद बाबा के खौफ को खत्म करना चाह रहे थे. अब ये गिरोह चांद बाबा के गिरोह से ज्यादा खतरनाक होने लगा था
साल था 1986. प्रदेश में वीर बहादुर सिंह की सरकार थी. Central में थे राजीव गांधी. अब तक चकिया के लड़कों का गैंग चांद बाबा से ज्यादा उस पुलिस के लिए ही खतरनाक हो चुका था, जिसे पुलिस ने शह दी थी. अब पुलिस अतीक और उसके लड़कों को गली-गली खोज रही थी. एक दिन पुलिस अतीक को उठा ले गई. बिना किसी लिखा-पढ़ी के. थाने नहीं ले गई. किसी को कोई जानकारी नहीं. लोगों को लगा कि अब काम खत्म है. रिश्तेदारों ने खोजबीन शुरू की. इलाहाबाद के ही रहने वाले एक कांग्रेस के सांसद को जानकारी दी गई. बताया जाता है कि वह सांसद प्रधानमंत्री राजीव गांधी का करीबी था. दिल्ली से फोन आया लखनऊ. लखनऊ से फोन गया इलाहाबाद और फिर पुलिस ने अतीक को छोड़ दिया.
एक time ऐसा भी था जब अतीक अहमद ने crime की दुनिया में ऐसा हंगामा खड़ा किया कि पुलिस तक के लिए नासूर बन गया. हत्या, अपहरण, फिरौती जैसे मामलों में मुकदमों की फाइल दर फाइल खड़ी होती जा रही थी. मगर अतीक का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पा रहा था. ऐसे ही दौर में अतीक ने ऐसा मास्टर स्ट्रोक खेला कि पुलिस चाहकर भी उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाई.
अब अतीक पुलिस के लिए नासूर बन चुका था. वो उसे ऐसे ही नहीं छोड़ना चाहती थी. अतीक को भी भनक लग गई थी. एक दिन भेष बदलकर अपने एक साथी के साथ court पहुंचा. बुलेट से. और एक पुराने मामले में जमानत तुड़वाकर सरेंडर कर दिया. जेल जाते ही पुलिस उस पर टूट पड़ी. उसके खिलाफ NSA लगा दिया. बाहर लोगों में मैसेज गया कि अतीक बर्बाद हो गया. लोगों में सहानुभूति पैदा हो गई. एक साल बाद अतीक जेल से बाहर आ गया. जेल से आते ही उसने इस सहानुभूति का फायदा उठाया. साथ मिला उसी कांग्रेसी सांसद का, जिसकी वजह से वो ज़िंदा बच पाया था. लेकिन अब बचने के लिए सियासत ही काम आ सकती थी. और ऐसा ही हुआ. 1989 में यूपी में विधानसभा के चुनाव हुए. West इलाहाबाद से अतीक ने election lada.
सामने था चांद बाबा. चांद बाबा और अतीक में कई बार गैंगवार हो चुकी थी. अपराध जगत में अतीक की तरक्की चांद बाबा को अखर रही था. यही कारण था कि चांद बाबा ने सीधी चुनौती दी. और वह हार गए. अतीक अहमद विधायक बन चुका था. कुछ ही महीनों बाद चांद बाबा की हत्या हो गई. बीच चौराहे, भरे बाजार. धीरे-धीरे, एक-एक करके चांद बाबा का पूरा गैंग खत्म हो गया. कुछ मार दिए गए. बाकी भाग गए. बाबा का दौर खत्म हो चुका था. अब भाई का दौर आ गया था. चांद बाबा की हत्या के बाद अतीक का खौफ इस कदर फैला कि लोग west इलाहाबाद सीट से टिकट लेने से खुद ही मना कर देते. यही कारण था कि अतीक ने 1991 और 1993 में भी लगातार चुनाव जीते.
इस बाहुबली नेता के दर्जनों किस्से हैं. एक समय था कि उसकी आंखों में आंखे डालकर देखना संभव नहीं था. लोगों को अपनी ऩजरें नीचे करने पर मजबूर होना पड़ता था. 5 फीट 6 इंच का यह बाहुबली नेता समय के साथ डॉन के रूप में खूब फेमस हुआ.
यानी अतीक ने उस वक्त तक सियासत के गलियारों में मजबूत दखल दे दी थी. जो आगे चलकर उसके बाहुबल और अपराध की दुनिया के लिए संजीवनी साबित होने वाली थी. ऐसे में आखिर कैसे अतीक ने गुनाहों के रास्ते पर चलते हुए politics में मजबूत पकड़ बनाई और आखिर क्यों politics में ऊंचाई पाने के बाद भी वो दूसरे बाहुबली नेताओं की तरह crime का रास्ता नहीं छोड़ पाया.
Crime की दुनियां में अतीक लम्बी छलांगे मार रहा था. मगर उसे पता था कि उसका काला अतीत कभी भी उसके रास्ते का रोड़ा बन सकता है. उसने politics में मजबूत दखल देने का मन बनाया. मगर politics के सफर में भी उसने crime का रास्ता नहीं छोड़ा. उसकी कामयाबी के रास्ते में जो भी आया उसे अपनी जान की कीमत चुकानी पड़ी.
इलाहाबाद के ही रहने वाले जिस सांसद ने अतीक पर हाथ रखा था, वो बड़े कारोबारी भी थे. उस वक्त शहर में सिर्फ उसी सांसद के पास निसान और मर्सिडीज जैसी विदेशी गाड़ियां होती थीं. लेकिन अतीक को भी इसका चस्का लग गया था. कुछ ही दिन में उसने भी विदेशी गाड़ी खरीद ली. अब उसका नाम, सांसद के नाम से बड़ा होने लगा था. सांसद जी को बात नागवार गुजरी. और ऐसी गुजरी कि विदेशी गाड़ियां ही रखनी छोड़ दीं. गाड़ियों के बाद नंबर था हथियारों का, अतीक को दो ही चीजों का शौक रहा. हथियार और विदेशी गाड़ी. दर्जनों विदेशी लग्जरी गाड़ियां अब तक उसके काफिले में रहीं.
तो यह थी इलाहाबाद के रहने वाले अतीक की कहानी। हो सकता है कि ऐसा ही कोई किरदार या कहानी का हिस्सा में आने वाली फिल्म केजीएफ चैप्टर 3 में देखने को मिले, जहां ऐसा ही gangwar हो,
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Brief
K.G.F: Chapter 1 is a 2018 Indian Kannada-language period action film written and directed by Prashanth Neel, and produced by Vijay Kiragandur under the banner of Hombale Films. It is the first of two installments in the series, followed by K.G.F: Chapter 2. The film features Yash as Rocky while debutant Ramachandra Raju features as Garuda.
Rashika Patel