एक दिन पांडव और कौरव राजकुमार गुरु द्रोणाचार्य के साथ शिकार के लिए पहुंचे। राजकुमारों का कुत्ता एक शख्स के आश्रम में जा पहुंचा और भौंकने लगा। कुत्ते के भौंकने से उस शख्स को अभ्यास करने में परेशानी हो रही थी। तब उसने बाणों से कुत्ते का मुंह बंद कर दिया। उस शख्स ने इतनी होशियारी से बाण चलाए थे कि, कुत्ते को बाणों से किसी भी तरह की चोट नहीं लगी।
यह सब वहां पर मौजूद द्रोणाचार्य गुरु ने देखा। तब वो दंग रह गए क्योंकि इतनी होशियारी से यह सब कुछ कौन कर सकता है, इसे लेकर उनके मन में बहुत सारे सवाल थे। कुत्ता जैसे ही चलकर जा रहा था उसके पीछे पीछे द्रोणाचार्य भी चलने लगे और वह कुत्ता जाकर पहुंचा उसी शख्स के पास जिसे द्रोणाचार्य देखना चाहते थे और वह और कोई नहीं बल्किकी एकलव्य था।
एकलव्य हिरण्य धनु नामक निषाद का पुत्र था। उसके पिता श्रृंगवेर राज्य के राजा थे, उनकी मौत के बाद एकलव्य राजा बना।
उसकी होशियारी और लगन देखकर द्रोणाचार्य ने अपना फैसला बदल दिया। उन्होंने सोचा था कि वह महाभारत के अर्जुन को धनुर्विद्या में माहिर बनाएंगे, पर एकलव्य को देखने के बाद उन्हें लगा कि यह वही शख्स है जो इन सारी चीजों के लिए सही दावेदार हैं।
पर तब भी उन्होंने एकलव्य की परीक्षा लेना सही समझा। उन्होंने एकलव्य से कहा,” तुम्हारी इस कुशलता से मैं बहुत खुश हूं। तुम्हारे अंदर वह जज्बा है, सीखने की भूख है। पर अगर तुम मुझे अपना गुरु बनाना चाहते हो तो उसके बदले क्या कर सकते हो?” तब एकलव्य ने कहा,” गुरु आपके साथ रहकर सब कुछ सीखना मेरा बहुत बड़ा सपना है। जब आपने मुझे सिखाने से इनकार कर दिया था अर्जुन के लिए, तभी मैंने फैसला किया कि मैं आप की मूर्ति बनाकर उसे अपना गुरु मानता रहूंगा और धनुर्विद्या सीख लूंगा। पर अगर आज सामने से ही आकर मुझसे यह पूछ रहे हैं, इसका मतलब किस्मत को यही मंजूर है कि आप ही मुझे यह विद्या सिखाएं। बोलिए मैं क्या कर सकता हूं?” द्रोणाचार्य ने कहा,” अपना अंगूठा काट कर दे सकते हो?”। उनका शब्द पूरा होने से पहले ही एकलव्य ने अपना अंगूठा काटा और उनके सामने रख दिया। बहुत खून बह रहा था पर एकलव्य के चेहरे पर मुस्कान थी, वह खुशी थी जिससे द्रोणाचार्य समझ गए कि यही वह शख्स है जो उनकी विद्या सीखने के लायक है। पर इसके पीछे द्रोणाचार्य का एक और मकसद था। अंगूठे के बिना वो एकलव्य को धनुर्विद्या सिखाने वाले थे, जिसकी वजह से वो और भी माहिर हो जाएगा। इतना माहिर की अर्जुन के पास भी ऐसी विद्या नहीं होगी और कोई उसे हरा भी नहीं पाएगा।
वैसे देखा जाए तो यह कहीं ना कहीं श्री कृष्ण जी की इच्छा थी, जिनके हाथ में सब की डोर थी।
एकलव्य एक तरफ खुद को माहिर बना रहा था, पर जब वो श्रृंगवेर का राजा बना और उसने अपने राज्य का विस्तार करना सही समझा, तब वो मगध राज्य के राजा और महाभारत में मौजूद एक दुश्मन “जरासंध” की सेना की तरफ से मथुरा पर आक्रमण करने आया। अब मथुरा यानी श्री कृष्ण जी की सेना पर हमला। एकलव्य जब हमला कर रहा था, तब चारों उंगलियों के साथ वो जिस तरह से बाण चला रहा था, उसे देखकर श्री कृष्ण जी हैरान हो गए। इतना माहिर होने के बावजूद भी एकलव्य वहां की सेना को, वहां पर मौजूद लोगों को मार रहा था। एक साथ 100 लोगों पर हावी हो रहा था, जो कि श्री कृष्ण जी को सही नहीं लगा और आखिरकार उन्हें एकलव्य को मारना पड़ा।
पर श्री कृष्ण जी को अर्जुन से बहुत प्यार था, लगाव था। उसके लिए उन्होंने द्रोणाचार्य का वध करवाया, ताकि सिर्फ अर्जुन ही दुनिया का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर कहलाए,फिर महा पराक्रमी कर्ण को भी उन्होंने कमजोर कराया, ताकि अर्जुन के रास्ते में कोई बाधा ना आए।
वैसे एकलव्य पिछले जन्म में श्री कृष्ण जी के चचेरे भाई थे, पर अफसोस की उन्हें मारना पड़ा।
खैर प्रभास की बाहुबली 3 पर आने वाली है और जिस हमने देखा है कि, कटप्पा भी बाहुबली के लिए उसके गुरु थे, जिन्होंने उसे सब कुछ सिखाया। कुछ लोग सीखने के बाद उसका अच्छी चीज के लिए इस्तेमाल करते हैं, तो कुछ लोग लोगों को मारने के लिए। ऐसी हालत में किसी ना किसी को रास्ते से हटाना पड़ता है जो कि आने वाली फिल्म में देखने को मिल सकता है।