चडालवाड़ा उमेश चंद्र, आंध्र की history में सबसे reputed police officers में से एक थे। पुलिस department में उन्हें ‘टाइगर’ कहकर बुलाया जाता था।
उमेशचंद्र ने अपनी IPS training वारंगल जिले में शुरू की थी, जो कि ऐसा district था, जहाँ नक्सल violence बहुत ज्यादा फैला हुआ था।
लेकिन उनकी honesty, integrity, fairness और अपनी duty के लिए respect को सभी ने पहचाना और उन्हें excellent officer के रूप में reputation दिलाई। उनकी fighting spirit को देखते हुए, Training के बाद उमेश चंद्र को ASP के पद पर उसी जिले में post किया गया था। Umesh chandra इस district में आने से खुश थे, क्योकी उन्होने फिर नक्सलियों पर अपना हमला जारी रखा और उनमें से कई को पकड़ने में भी सफल रहे।
उनके seniors भी उनके work ethics, professionalism और इस district के लोगों के लिए उनकी चिंता से impress हो गए थे।
Umesh chandra एक बहुत ही simple person थे और वो हर व्यक्ति से बहुत लगाव रखते थे। उन्होंने “जनजागृति” नाम का एक successful awareness campaign भी शुरू किया।
इसके बाद उन्हें पुलिवेंदुला में crime rate को कम करने का काम दिया गया। लेकिन तीन महीने के उनके short period में भी उन्होने वहाँ के लोगो की दिल जीत लिया था। उन लोगो ने तो Umesh chandra के लिए Poems और गीत भी लिख दिए थे। इसके अलावा वहाँ शांति लाने के उनके efforts के लिए उन्हें publicly सम्मानित किया गया था।
आंध्र प्रदेश की सरकार ने उमेश चंद्रा में किसी भी problem की जड को तुरंत पहचानने और उसे खत्म करने की extraordinary ability को पहचाना। सरकार ने उन्हें कडप्पा district में शांति लाने के लिए चुना और उन्हें Superintendent of police के पद पर promote भी किया। Umesh Chandra ने यहाँ भी इस challenge को Accept किसा और एक और Chaotic district में शांति लाने का जिम्मा उठाया।
फिर जून 1997 में, उमेश चंद्र को करीमनगर के लिए appoint किया गया था। उन्होंने 1998 अप्रैल तक करीमनगर में काम किया। इस district में सबसे ज्यादा नक्सली gangs थे। और Normal life तो वहाँ एक सपने जैसी बन गई थी।
Corrupt और selfish reasons की वजह से कुछ लोगो ने जिले के लोगों का शोषण करने में नक्सलियों का साथ दिया। लेकिन नक्सली मोर्चे पर, उमेश चंद्रा ने बडी ही सावधानी से उनके खुलाफ secret operations के Plans बनाए और उन plans को execute करना शुरू किया। उन्होंने officers और constables के एक group को एक साथ रखा, जिस पर वो काम पूरा करने के लिए भरोसा कर सकते थे। और एक Fair, लेकिन strict administrator की उनकी reputation ने कई नक्सलियों को खुद ही surrender करने के लिए राजी करने में मदद की।
Umesh Chandra जो एक कमान से निकले तीर की तरह नक्सलियो का सीना चीरते हुए आगे बढ रहे थे, अचानक एक ऐसा हादसा होता है जो पूरे Andhra pradesh को हिला कर रख देता है।
4 सितंबर, 1999 जब Umesh chandra की गाडी एक ट्रैफिक लाइट पर रुकती है। और तभी चार नक्सलियों उन पर, उनके driver और उनके Gunman पर गोलियां चला देते है। उनके ड्राइवर और gunman को तुरंत मार दिया गया था।
और उसी दिन Umesh chandra अपने हथियार के साथ नहीं था। हालाँकि, अपने आदमियों के लिए उसका प्यार इतना Strong था कि उसने अपनी सुरक्षा के बारें में एक सेकंड के लिए भी नहीं सोचा। और उन नक्सलियो के पिछे भागने लगे। एक-दो नक्सलियों का पीछा करते हुए, नक्सलियों ने भांप लिया कि उनके पास हथियार नहीं है और वे पीछे मुड़े और उन पर दो बार फायरिंग की। इसके बाद उमेश चंद्रा सड़क पर गिर पड़े।
पूरे राज्य में हर कोई, चाहे वो किसी भी उम्र का हो, इस Incident पर आंसू बहा रहा है। राज्य के बाकी जिलों के सैकड़ों हजारों लोग एक साहसी, बहादुर योद्धा को सम्मान देने के लिए हैदराबाद पहुंचे, जिन्होंने अपने सिद्धांतों से समझौता करने से इनकार कर दिया था।
उमेश चंद्र के साथ काम करने वाले हर पुलिस officer ने अपने seniors से सवाल किया कि उमेश चंद्र को polive protection क्यों नहीं दी गई। कई पुलिसकर्मियों ने पुलिस के top police officers के लिए अपना गुस्सा भी जताया। आम आदमी भी police के रवैये से खुश नही थी।
क्योंकी top police officers Umesh chnadra की मौक के हादसे के लिए अलग अलग तरह के बगाने बना रहे थे। लेकिन सबलोग जानते थे कि वास्तव में उमेश चंद्रा को सुरक्षा नहीं दिए जाने का main कारण top police officials ही थे। वे जानते थे कि उमेश चंद्र नक्सलियों से निपटने में उन सभी की तुलना में ज्यादा successfull रहे थे, और यही वजह उन्हें उनका Main target भी बनाती थी। और ये जानते हुए भी उन्होंने उमेश चंद्र को नक्सल मोर्चे पर security force provide करने से इनकार कर दिया था।
Umesh Chandra की inspiring कहानी हमें Balwan 2 में भी देखने को मिल सकती है।