Kahani मराठा regiment की!
साल 1948 कश्मीर के पथराडी के इलाके में मराठा फौज के जवान अपनी सांस रोक नजर टिकाए रात के बढ़ते में दुश्मनों पर हमला बोलने के लिए इंतजार कर रहे थे, उनका निशाना था कश्मीर में घुसपैठ कर घुसी हुई Pakistani फौज। ऑर्डर थे की हमला सुबह की पहली किरण के साथ ही शुरू होगा। सैनिक तब तक अपनी पोजीशन के चुके थे, किसी को kano Kan is mission ke bare me khabar nahi lagne deni थी, पर तभी कुछ हलचल हुई और पाकिस्तानी फौज को भारतीय सैनिकों के हमले के बारे में पता चला, पर जब तक ये बात आगे फैलती तब तक “जय शिवाजी chatrapati महराज” ke nare se maratha फौज के सैनिक दुश्मन सैनिकों पर हमला bom dete है।
Martha रेजिमेंट के सैनिकों पर मानो खून सवार थाk ke bad ek bhartiya sainik lashe giraye ja rahe the, har taraf खून ही खून था, कुछ दुश्मन सैनिक तो दम दबा कर अपनी जान बचा कर भाग निकले तो कुछ बुरी तरह से घायल हुए और अधिकतर मौत के घाट रात के साए में ही सुला दिए गए।
ये कोई वार नही था बल्की आने वाली वार का मात्रा एक हिस्सा था, कश्मीर के नौशेरा को वापस से जीतने के लिए। पर रास्ते को घुसपैठियों ने अपना कब्जा जमा कर रखा था जिसकी सफाई यानी की उनके खतम के लिए ये मिशन चलाया गया था jiska jimma tha brigediar Usman के कंधो पर।
कौन थे ब्रिगेडियर उस्मान ur kya thi unki kahani chaliye शुरू से जानते है।
साल 1947 india pakistan के batware का दिन, इस समय तक मुस्लिम nationalism apne charam par tha, All india muslim league की लीडरशिप में मुस्लिम एक seprate State ki demand kar rahe थे। नतीजन हिंदू और मुस्लिम में कई riots हुए। इन riots ko dekhate हुए दो देशों के निर्माण की bat हुई, इंडिया और पाकिस्तान।
Sirf देश ही नही देश की जनता भी बांट रही थी, और देश की सेना भी, 50 और 77 पैरा ब्रिगेड भारत के हिस्से में आई और 14 पैरा ब्रिगेड पाकिस्तान के हिस्से में पर फिर भी सैनिकों को ये पूरी छूट दी गई थी की वो अपने मुताबिक देश चुन सकते है उस्मान बलूच रेजीमेंट में थे. धर्म से मुसलमान थे. और सेना के वरिष्ठ अधिकारी थे. तब तक वो ब्रिगेड कमांडर यानी ब्रिगेडियर के पद पर पहुंच चुके थे. लोगों को उम्मीद थी कि उस्मान पाकिस्तान जाना चुनेंगे. लेकिन उस्मान के फैसले ने सबको चौंका दिया. उस्मान ने भारत को चुना. उनकी रेजीमेंट के साथी अधिकारियों ने उस्मान के फैसले पर सवाल उठाए. उनसे दोबारा सोचने को कहा गया.
बात सिर्फ यहीं खत्म नहीं हुई. मोहम्मद अली जिन्ना और पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली ने उस्मान को जल्दी प्रोमोशन का ऑफर दिया. दावा किया जाता है कि उस्मान को पाकिस्तान सेना का अध्यक्ष बनने का भी ऑफर दिया गया. लेकिन कोई पैतरा काम ना आया. उस्मान टस से मस ना हुए. उस्मान अपने देश लौटे और 77 पैराशूट ब्रिगेड के साथ अमृतसर के लिए रवाना हो गए.
देश का बंटवारा हो चुका था पर लालची पाकिस्तान की नजर कश्मीर पर थी, और उसने कश्मीर पर धावा बोल दिया, तब कश्मीर के राजा हरिसिंह ने इंडिया से मदद मांगी।
एक एक कर इंडियन soldiers ने पाकिस्तानियों के पैर कश्मीर से उखड़ने पर मजबूर कर दिए। इन सब में शामिल थे ब्रिगेडियर उस्मान जिन्हे झांझड़ और नौशेरा की पोस्ट वापस हासिल करने का जिम्मा सौंपा गया था।
इंडियन सोल्डर्स काम थे पर उनका जज्बा नही, uar ब्रिगेडियर उस्मान के कमांड में इंडियन आर्मी ने वो कर दिखाया जो किसी ने सोच भी नही होगा।
ये ब्रिगेडियर उस्मान ही थे जिनके कमांड में 36 मराठा regiment ke ऑफिसर पाकिस्तानियों से तब तक लड़ते रहे और उन्हे रोक कर रखा जब तक की बाकी सैनिक भी उनकी मदद के लिए नही पहुंच गए।
फरवरी 1948 तक नौशेरा पर ब्रिगेडियर उस्मान के कमांड में इंडिया ने वापस से जीत हासिल की। पर अभी भी झांझड़ा का इलाका बाकी था, ब्रिगेडियर उस्मान ने कसम खाई की वे तब तक बिस्तर पर नही सोएंगे जब तक की अपने दुश्मनों को मौत के घाट न सुला de
Aur आश्चर्यजनक तरीके से ब्रिगेडियर उम्र की टुकड़ी ने झांझड़ा पर bui फतह हासिल कर ली पर इन सब में ब्रिगेडियर उस्मान भी सहादात को प्राप्त हुए।
अगर ब्रिगेडियर उस्मान न होते तो शायद कश्मीर आज पाकिस्तान का हिस्सा होता और भारत अपनी पहली जंग हार चुका होता। और ये थी कहानी ब्रिगेडियर उस्मान की।
Jaya Bhardwaj