साल 1947 india pakistan के बंटवारे का दिन, इस समय तक मुस्लिम nationalism अपने चरम पर था, All india muslim league की लीडरशिप में मुस्लिम एक सेपरेट स्टेट की डिमांड कर रहें थे। नतीजन हिंदू और मुस्लिम में कई riots हुए। इन riots को देखते हुए दो देशों के निर्माण की बात हुई, इंडिया और पाकिस्तान।
ऐसे में जितने भी प्रिंसली स्टेट्स थे उन्हे भारत और पाकिस्तान में मिलाए जाने को लेकर कई disputes हुए।
भारत में जगह जगह पर दंगे हो रहे थे और कर शहरो और राज्यों से लोग पलायन कर त्रिपुरा की ओर भी आ रहे थे।
ऐसे में त्रिपुरा के राजा, राजा वीर विक्रम को अंदेशा हो चुका था की आगे क्या होने वाला है, उन्हे भनक लग चुकी थी षड्यंत्र की और आगे होने दंगो की।
इसलिए समय रहते हो राजा वीर विक्रम ने 28 April को ये घोषणा कर दी की त्रिपुरा भारत का ही एक हिस्सा बनेगा।
उधर दूसरी तरफ भारत पाकिस्तान का बंटवारे करने वाले Cyril Radcliff ने tippera और Noakhali जो की त्रिपुरा का पहाड़ी इलाका था उसे पाकिस्तान के हिस्से में दे दिया था।
अब कुछ ऐसा होता है जिससे सारा खेल पलट जाता है और षड्यंत्रकारी अपना जल बुनने लगते है।
17 मई को अचानक से त्रिपुरा के राजा , राजा वीर विक्रम की मौत हो जाती है। त्रिपुरा की कमान अब राजा वीर विक्रम की पत्नी महारानी कंचन प्रभा के हाथो में आती है
टिप्पेरा और नोआखली के पाकिस्तान के मिलने से मुस्लिम लीग पार्टी के हौसले पहले से ही बढ़े हुए थे। ऐसे में जब राजा वीर विक्रम की मौत की खबर आई तो मुस्लिम लीग ने त्रिपुरा को पूरा का पूरा अपने कंट्रोल में लेने का और पाकिस्तान में मिलने का षड्यंत्र रचा।
राजा वीर विक्रम के सौतेले भाई durjay किशोर को भी गद्दी की लालसा थी, उन्होंने मौके का फायदा उठाते हुए, इस समय के राज्य के सबसे रईस जमींदार गेडू miya से हाथ मिला लिया जिन्हे की मुस्लिम लीग पार्टी का समर्थन प्राप्त था।
मुस्लिम लीग चाहती थी की durjay किशोर और गेदू मिया की मदद से त्रिपुरा में दंगे भड़काए जाए और उसकी जनता को भड़काया जाए ताकि वो pakistan me मिलने को विवाह हो जाए।
रानी कंचन प्रभा इन सभी षड्यंत्र को समझ रही थी, उन्होंने राज्य में ये बात अनाउंस करवा दी की राजा वीर विक्रम ने पहले ही त्रिपुरा को भारत में मिलाए जाने का फैसला कर लिया था, और उन्होंने पार्लियामेंट में representative के लिए भी sign कर दिया था।
पर अभी भी durjoy kishor और मुस्लिम लीग ने हर नही मानी, shadyantra अब उनके घर के भीतर जो घुस चुका था।
सभा के अधिकतर मेंबर durjay किशोर के साथ षड्यंत्र में मिल चुके थे।
ऐसे में रानी कंचन प्रभा ने सख्ती दिखाई और राज्य के सभा के कई मेंबर्स समेत दुर्जय किशोर को राज्य से निष्कासित कर दिया।
और तुरंत ही सरदार पटेल को षड्यंत्र के बारे में सूचित किया। सरदार पटेल त्रिपुरा को दूसरा कश्मीर नही होने देना चाहते थे उन्होंने समय रहते ही जल्द एक्शन लिया और air force को तुरंत त्रिपुरा के लिए रवाना किया।
वहा, भारत की सेना ने दंगो को संभाला और रानी कंचन प्रभा को सुरक्षा भी प्रदान की।
और फिर रानी स्वयं पार्लियामेंट में त्रिपुरा की प्रतिनिधि बनी । साल भर तक रानी कंचन प्रभा ने कश्मीर जैसी हालत त्रिपुरा में न हो इस बात का खास ध्यान रखा और सभी तरह के दंगो और विद्रोहो का बड़ी काबिलियत से दमन करती रही। 15 अक्टूबर 1949 आखिरकार त्रिपुरा के ऊपर madra raha sankat tala ।
Aur vo भारत में विलय हो गया। और 1972 में उसे एक सम्पूर्ण राज्य का दर्जा मिला. ऐसे ही कहानी हमे Gadar-2 में देखने को मिल सकती है.
Jaya Bhardwaj