भारत को आज़ाद कारवाना कोई आसान काम नहीं था, उसमें कितने लोगों ने अपनी जान गंवाई थी यह वही जानते थे और बहुत ऐसे क्रांतिकारी भी है जिन्को वो नाम और पहचान नहीं मिली जिसके वो असली हक़दार थे और उन्हीं में से एक थे महादेव बापट जिनका जन्म 12 नवंबर साल 1880 में अहमदनगर जिले के पारनेर में हुआ था, बापट एक मिडिल क्लास फैमिली से संबंधित करते थे, पढ़ाई में अच्छे होने के वजह से अपनी मैट्रिक की परीक्षा भी वहीं के स्कूल से दी लेकिन आपने आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें पुणे के डेक्कन कॉलेज में एडमिशन लेना पड़ा था , बापत जानते थे कि उनका रूझाओ देश को आजाद करने में था और उसी बिच उनकी मुलाकात चापेकर क्लब के एक सदस्य दामोदर बलवंत के संपर्क में आ गए जिन्होंने बापट के क्रांतिकारी आंदोलन की शुरुआत की थी। साल 1904 में मंगलदास नथुबाई स्कॉलरशिप हासिल करने के बाद बापट अपनी इंजीनियरिंग की क्लास करने के लिए इंग्लैंड चले गए थे अगर मेकर्स इस वक़्त एक ट्विस्ट ला देते हैं जिसमे ये दिखाया जाये कि बापट के साथ इंग्लैंड में क्या किया गया और उनके अंदर की कार्तिकारी कि चिंगारी कैसे आग के रूप में बदली तो ये दर्शकों को आकर्षित तो करेगी ही साथ ही साथ उनके अंदर इंटरेस्ट भी जगेगी। जब बापट ने देखा कि इंग्लैंड में भी लोग भारत के बारे में उल्टा सीधा बोल रहे हैं तो उनकी कोशिश थी कि जितना हो सके अपने लोगो के साथ रहे इसलिए उन्हें समाजवादी और रूस करांतिकारियो और वी.डी. सर्वकार के संपर्क में आए और बाद में एक सलाह पर बापट तुरंत पेरिस के लिए निकल गए ताकि वो वहा जकार बम बनाने की तकनीक को सिख सके। अब समय आ गया था बापट के वापस आने का एक दम उसी अंदाज में जिस अंदाज में आरआरआर के पार्ट वन में राम चरण आए और बापट ने अपना पेरिस जाना बरबाद नहीं होने दिया और जब वो आए तो उनके हाथों में एक बम का मैनुअल और दो रिवॉल्वर थी और वो साल 1908 में इंडिया आ गए थे। बापत बाकियों की तरह नहीं थे उनको उनकी जिम्मेदरी अच्छे से पता थी तो वो आते ही वहा के सारे क्रांतिकारियों को बम बनाने का तारिका सिखाने में लग गए थे, बापट चाहते थे कि वो अपना ब्रिटिश के खिलाफ जंग स्टार्ट करने से पहले एक स्ट्रॉन्ग ग्रुप बना लें लेकिन उनकी इस सलाह पर किसी ने भी ध्यान नहीं दिया था। साल 1908 में जब अलीपुर बमबारी हुई और न चाहते हुए भी बापट को खुद को छिपाना पड़ा लेकिन उनको पुलिस ने हमला करते हुए देखे लिया था जिसके वजह से उनको 3 साल की सजा हुई थी।
साल 1915 में जेल से बापट छूट कर आए तो उन्होंने तिलक के स्वामी वाले समाचार पत्र के सहायक के रूप में काम शुरू कर दिया था ताकि वो उसके समर्थन में अपना काम कर सके और अंग्रेजों के खिलाफ अपना आंदोलन जारी रख सके। तभी उनकी मुलाकात गांधी जी से हुई और गांधी जी ने उनको अपने विचार के बारे में बताया तो तब से बापट उनकी बाते मान गए और उनके रास्ते पर चलने लगे थे। बापट को भी लगाने लगा था कि मार पिट से कुछ भी नहीं होगा, एक बार गांधी जी ने बापट को पॉलिटिक्स में जुड़ने की बात कहीं बापट ने कहा था कि वो चाहता है उनका देश किसी भी हाल में आजाद हो जाएं और उनके लिए जो भी करना पड़ेगा वो करेंगे और अगर इस सीन को मेकर्स थोड़ा ऐसा दिखाते हैं कि बाप थक चूके थे सिध्धे रास्ते पर चलते हुए और फिर से वो अपने रूप में वापस आ गए तो ये टर्निंग प्वाइंट हो सकती है फिल्म कि उसके बाद बापट दूर हो गए थे पॉलिटिक्स से और अब उनका एक ही चीज कहना था आजादी दो या हम तुमसे छिन लेंगे। जिसके बाद बापट ने गांधी जी के साथ एक ऐसे आंदोलन किया जिसमें उनका एक ही मक़सद था कि उनको आजादी मिली बस और कुछ भी नहीं, साथ ही साथ जो लोग बम बनाने की तकनीक बापट से सीखना चाहते थे बापट उन्हें अच्छे से समझते और कोशिश करते थे कि जितने शौक से वो बम बनाना सिख रहे हैं बस उतने ही हिम्मत से वो भारत को आज़ाद करने के लिए उनका साथ दे और उनके साथ लड़े तभी जाकार आज़ादी मिल सकती थी। बापट ने अपने तन मन से लड़ाई की थी और उनको आजादी मिली भी लेकिन 28 नवंबर साल 1967 में उनका देहांत हो गया था जिसके बाद पुणे के एक सड़क का नाम बापट के नाम के ऊपर रखा गया था। ये कहानी हो सकती है आने वाली फिल्म आरआरआरआर की, आपको ये कहानी कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताइएगा और तब तक आप अपना ध्यान रखिए और हमेशा मुस्कुराते रहें।
Chandan Pandit