अपने पेरेंट्स के साथ नेपाल से मुंबई आया सुनील सिंह जब 3 साल का था, तभी से उसकी जिंदगी में struggle शुरू हुआ। मां की कब और कैसे मौत हुई, यह भी नहीं पता। सिर्फ एक औरत उसके साथ रहती थी और वो अचानक कहीं चली गई, सिर्फ इतना ही उस 3 साल के बच्चे को समझ आया। मां की मौत के बाद सुनील के पापा भी हड़बड़ा गए, उन्होंने नौकरी छोड़ दी और वह घर पर बैठे रहे।
फिर पापा ने पड़ोस की आंटी के कहने पर 4 साल के सुनील को यह कहकर अनाथालय में डाल दिया, कि “वहां पर तुम्हें बहुत मजा आएगा”। फिर वहां जाने के बाद धीरे-धीरे बड़े होते हुए सुनील की मारधाड़ शुरू हुई और वह बदमाश होता गया।
वैसे आने वाली गणपत फिल्म में भी हो सकता है कि, गणपत इसी तरह के दर्दनाक बचपन से गुजरे,जिसकी वजह से उसके पिता होकर भी वो अनाथ फील करें और तब उसकी जिंदगी एक अजब मोड़ ले।
खैर, धीरे-धीरे थोड़ा बहुत पढ़ाई में ध्यान लगाते हुए सुनील 8 साल का हो गया और वहां पर कराटे सिखते हुए उसे एथलीट बनने का सपना आया।
अब सुनील बहुत शरारती, मस्ती करने वाले लड़के से 14 साल का mature लड़का बन चुका था। पर तब वो हाइट से परेशान था। बाकी बच्चों के comparison में उसकी हाइट ज्यादा थी। उसने तय किया कि अब वो सीधा 10th class में पढेगा और ओपन स्कूल से फॉर्म भरेगा। पर उसकी सोच से अनाथालय management को परेशानी थी। उनका कहना था कि, वो छठी, सातवीं, आठवीं सब क्लासेस करे। तब सुनील को गुस्सा आया और वो अनाथालय छोड़कर बांद्रा बैंड स्टैंड के पीछ वाली झोपड़पट्टी में चला गया। वहां 200 रुपए महीने पर किराए की झोपड़ी मिलती थी। पर उस झोंपड़ी की छत अखबार की थी, बारिश में छत ही उड़ जाती थी, पूरा पानी भर जाता था और नहाने के लिए मोहल्ले के नल पर जाना पड़ता था।
एक दिन एक मराठी आंटी पर पानी गिर गया। उसने सुनील को गालियां देना शुरू कर दिया। इतने में वहां बहुत सारे लोगों ने इकट्ठा होकर सुनील को जोर से चांटा मारा।
फिर झोपड़ी का किराया देने के लिए सुनील ने दूध डिलीवरी का काम शुरू किया। सुबह तीन बजे उठकर घर-घर दूध देने जाता था। इससे महीने के 1500 रुपए मिल जाते थे। इस तरह एक साल बीत गया और उसकी दसवीं हो गई। फिर वो वापस अनाथालय आ गया और वहां मार्शल आर्ट सीखना शुरू कर दिया था।
अब जिस तरह से अनाथालय से भागकर सुनील झोपड़पट्टी वालों के contact में आया, वैसे ही गणपत भी झोपड़पट्टी वालियों की भाषा सीख ले, बदमाशी करे और वहां के लोगों से प्यार पाए।
वैसे सुनील जब अनाथालय वापस लौट आया, तब एक बहुत बड़ी सेलिब्रिटी अनाथालय की स्पॉन्सर थीं। उन्होंने अनाथालय management से कहा कि, “बच्चों को कजूएरा (ब्राजील का मार्शल आर्ट, जो वहां का राष्ट्रीय खेल भी है) सिखाना चाहिए”। इसके बाद एक international trainer को भी hire किया गया।
इसी के चलते, अनाथालय से 6 बच्चों को सिलेक्ट किया गया, जिनमें सुनील भी था। सभी को कोच अपने academy में ट्रेनिंग देने लगे और तभी सुनील ने ग्रीन ब्लेट हासिल किया।
एक दिन वहां Paris से एक टीचर विजिट करने आए। उन्होंने सुनील से कहा,” Paris चलोगे?”, पर सुनील को वह मजाक लगा।
फिर 6 महीने बाद उनका फोन आया कि,” टिकट भेज रहा हूं, तुम्हें Paris आना है”। तब पहली बार सुनील हवाई जहाज में बैठा।
वहा सुनील को कजूएरा की ट्रेनिंग दी गई। उसे ब्राजील भी भेजा गया। फिर भारत आकर सुनील ने खुद कजूएरा सिखाना शुरू कर दिया।
पर अनाथालय के कजूएरा के कोच के साथ उन्हें असिस्ट करने के बाद सुनील को लगा कि, वह उसके नाम पर बिजनेस कर रहे हैं, उसके अनाथ होने की कहानी सुना कर पैसे कमा रहे हैं।
वैसे यही वह पॉइंट है, जहां पर सुनील की तरह गणपत की भी सटक सकती है, मतलब उसे गुस्सा आ सकता है और तेज गुस्से में उसके कुछ दुश्मन भी बन सकते हैं।
फिर वो सब छोड़कर सुनील ब्राजील चला गया। वहां से भारत लौटने के बाद schools में काम मांगने गया। उसे अमेरिकन स्कूल, बिडला स्कूल, ओबरॉय स्कूल जैसे नामी स्कूल बतौर clients मिले। उसने handicap और झोपड़-पट्टी के बच्चों को कजूएरा सिखाना शुरू किया। और ऐसे ही अपनी एक कंपनी खोली और उसने इंटरनेशनल ट्रेनर के तौर पर पहचान हासिल की।
तो आने वाली गणपत फिल्म में गणपत बने टाइगर श्रॉफ भी इसी तरह किसी लड़के को और उसकी जिंदगी को दिखा सकते हैं, जो झोपड़पट्टी से निकलकर देश का सबसे बड़ा खिलाड़ी बन गया हो।
Trupti