Hitler ने की Gurkha Regiment की तारिफ!
Gurkha Regiment, Indian Army का सबसे brave और strong regiment माना जाता है। और उनकी इसी बहादुरी के बल पर ये पूरा regiment बनाया गया था।
गोरखा रेजीमेंट के बनने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। साल 1815 में जब ईस्ट इंडिया कंपनी का नेपाल राजशाही से युद्ध हुआ तो नेपाल की हार हुई, लेकिन नेपाल के गोरखा सैनिकों ने उनसे बहादुरी से लड़ाई लड़ी। कहा जाता है कि अंग्रेजों से लड़ाई के वक्त गोरखाओं की बहादुरी से सर डेविड ऑक्टरलोनी इतने impress हुए, कि उन्होंने गोरखाओं के लिए एक अलग रेजिमेंट बना दी।
रेजिमेंट की नींव अंग्रेजों से युद्ध के बाद 24 अप्रैल 1815 को रखी गई थी। बाद में 1816 में जब अंग्रेजों और नेपाल राजशाही के बीच Sugauli treaty हुई तो ये तय हुआ कि ईस्ट इंडिया कंपनी में भी एक गोरखा रेजीमेंट बनाई जाएगी, जिसमें गोरखा soldiers होंगे। और तब से, गोरखा Indian Army का एक जरूरी हिस्सा बन गया।
गोरखा रेजीमेंट ने शुरू से ही अपनी bravery का परचम लहराया और britishers के कई जरूरी wars में उन्हें जीत भी दिलाई। इस regiment ने गोरखा-सिख war, एंग्लो-सिख war और अफगान wars के साथ- साथ, 1857 के indian war of independence में भी भाग लिया। इस रेजिमेंट का कुछ हिस्सा बाद में ब्रिटिश सेना में भी शामिल हो गया। और अभी भी गोरखा रेजीमेंट ब्रिटिश सेना का अहम हिस्सा है।
1947 में जब भारत आजाद हुआ, तब भारत, नेपाल और ब्रिटेन के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता (tripartite agreement) हुआ था, जिसमें छह गोरखा रेजिमेंटों को indian army में transfer कर दिया गया था। फिर बाद में एक सातवीं रेजीमेंट बनाई गई।
हर कोई अपने दुश्मन का पसंदीदा नहीं होता – लेकिन गोरखा रेजीमेंट के साथ, चीजें अलग थीं। एक ओर उन्होंने World War के दौरान Germans को कड़ी टक्कर दी और दूसरी ओर, उनकी fighting spirit को देखकर एडॉल्फ हिटलर ने उनकी तारीफ की।
ईस्ट इंडिया कंपनी ने नेपाल पर attack करने की कोशिश की, लेकिन बदले में उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा। गोरखाओं ने ब्रिटिश attackers को बुरी तरह से हरा दिया और वो बिना कुछ हासिल किए वापस लौट गए।
छोटे नेपाली fighters मानो जीतने के लिए ही पैदा हुए हों। एक motto के साथ – ‘कायर होने से मरना बेहतर है’, हर एक ने मरने से पहले, अपनी पारंपरिक बंदूकों और खुखरी (एक छोटा नेपाली चाकू) से opponents की कई सेना को मार डाला। और फिर भी, वे शांत, सरल लोग थे जिनके चेहरे पर हमेशा peaceful expression होता था।
ब्रिटिश अपनी abilities और वीरता से चौंक गए थे, और 1815 में गोरखाओं के साथ एक peace deal sign की, जिससे उन्होने भी ब्रिटिश Army में एक गोरखा रेजिमेंट को शामिल किया।
गोरखा रेजीमेंट हर वक्त ब्रिटिश के साथ खड़े रहे और उनके बीच बहादुरी के लिए highest british awards 13 विक्टोरिया क्रॉस भी जीते। उनमें से 200,000 से अधिक ने 2 world wars में लड़ाई लड़ी और हांगकांग, मलेशिया, बोर्नियो, साइप्रस, फ़ॉकलैंड्स, कोसोवो, इराक और अफगानिस्तान में भी अपनी service दी। आज भी इंग्लैंड में “रॉयल गोरखा राइफल्स” के नाम से एक अलग गोरखा रेजिमेंट है।
गोरखा especially, close- quarter लड़ाइयों में unbeatable थे। उनके दुबले-पतले शरीर ने उन्हें unbeatable ability देता है, जिसे दुश्मन देखते ही कमजोर समझते है। जिसका फायदा उठाकर वो दुश्मन को अपने solid techniques से surprise कर देते थे।
गोरखाओं ने World War 2 के दौरान हिटलर की जर्मन force की इतनी बुरी हालत करी कि, उन्होंने गोरखा की तारिफ करते हुए कहा, “अगर मेरे पास गोरखा होता, तो मैं पूरी दुनिया को जीत सकता था।”
Hitler उन्हें ‘Black Devils’ कहता था। हालांकि, ये बात confirmed नही है, पर सुनने में आया था कि हिटलर ने इन Nepali kings को कई gifts भी भेजे थे। और, नेपाली land पर पहली मर्सिडीज कार भी हिटलर द्वारा भेजी गई थी।
भारतीय सेना में भी गोरखाओं की वीरता के किस्से बहुत हैं। एक famous कहानी ये है कि, 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान, गोरखा रेजिमेंट Tanot mata border पर युद्ध कर रही थी। पाकिस्तानी सेना में लंबे, भारी पठानों को soldiers के रूप में भर्ती किया गया था।
और उस वक्त लडाई में, एक लम्बे पठान ने छोटे गोरखा का ये कहते हुए मज़ाक उड़ाया, कि गोरखा उसकी कमर तक भी नहीं पहुँचेगा। गोरखाओं ने हंसते हुए पठान की तरफ, अपनी छोटी Khukri (Nepali knife) को हाथ में हिलाते हुए बढता है।
अपनी तरफ आते देख पठान जोर से रहता है कि, “तू तो मुझ तक भी नहीं पहुँच सकता, बौना”।
इसके बाद, गोरखा ने शांति से पठान को अपना सिर घुमाने के लिए कहा और जैसे ही पठान ने ऐसा किया, उसका सिर नीचे गिर गया। गोरखाओं ने पलक झपकते ही पठान के दो टुकड़े कर दिये थे, और वो भारी पठान होश में आने से पहले ही बेजान हो गया था।
ऐसी ही हैं हमारे गोरखा और उनके साहस और वीरता की दास्तां। गोरखा अपनी prestige, लोगों और अपने राष्ट्र के लिए लड़ते हैं, अपने जीवन या सुरक्षा के बारे मों बिना सोचे, लडते है। फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ ने ठीक ही कहा था, “यदि कोई व्यक्ति कहता है कि वह मरने से नहीं डरता है, तो वह या तो झूठ बोल रहा है या गोरखा है।”
Rambo फिल्म के लिए भी Gurkha Regiment के बहादुरी के किस्सो से inspiration ली जा सकती है।