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Pakistan को Bharat का झटका!

15 अगस्त का दिन था, भारत अपनी आजादी का जश्न मना रहा था, वही पाकिस्तान भी एक दिन पहले ही अपनी आजादी का जश्न मना रहा था।

दोनो ही देशों में batware के जख्म अभी भी जिंदा थे। दोनो ही देशों में batware और जमीन को लेकर बहुत ही बड़ा संघर्ष हुआ था और आखिर कर ये संघर्ष खतम हुआ।

पर हैरानी की बात थी की अभी तक दोनो देशों का नक्शा अभी तक न तो जिन्ना ने देखा था न ही नेहरू ने।

ऐसा क्यू? तो ऐसा इसलिए क्युकी अभी भी पंजाब और बंगाल के कुछ हिस्सों का फैसला करना बाकी था, जो की नक्शा खुलने के बाद पता चलता जाता किसके हिस्से में गया है।

सीमा पर मौजूद ये लोग हैरान-परेशान थे, कौन कहाँ जाएगा?. धर्म और ज़मीन आपस में घुलती जा रही थी. डर था कि इस हिस्से में रह गए तो क्या सुलूक होगा. या उस हिस्से में चले गए तब क्या होगा.

पंजाब का गुरदासपुर ज़िला. यहां मुसलमानों की अच्छी ख़ासी जनसंख्या थी. ऐसा ही कुछ फ़िरोज़पुर में भी था. पाकिस्तान को लग रहा था कि ये दोनों उसके हिस्से में आएंगे. 17 को नक़्शा खुला तो सब हक्के बक्के. एक तहसील को छोड़कर पूरा गुरदासपुर भारत के हिस्से में था. और ये सब मुमकिन हुआ था. एक शख़्स के चलते. अपने जमाने के धुरंधर वकील, उनका नाम था, मेहर चंद महाजन।

इन्होंने ही कश्मीर के भारत में विलय पर बहुत खास भूमिका निभाई थी।

वेस्ट पंजाब के गवर्नर सर फ़्रांसिस मूडी ने दावा किया था कि आठ अगस्त को उन्हें एक नक़्शा मिला. जो उन्हें माउंटबेटन के सचिव ने भेजा था. इसके अनुसार फ़िरोज़पुर और जीरा को वेस्ट पंजाब यानी पाकिस्तान के हिस्से में दिखाया गया था. बाद में पाकिस्तान के विदेश मंत्री जफरुल्ला ख़ां ने ये मसला UN सिक्योरिटी काउंसिल में भी उठाया. तब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट फ़ॉर कॉमन वेल्थ, नोल बेकर से इस मामले में तहक़ीक़ात करने को कहा.।

बेकर ने रैडक्लिफ से पूछा तो पता चला कि रैडक्लिफ ने जो नक़्शा बनाकर दिया था. उसमें माउंटबेटन ने कुछ चेंज करवाए थे. बाद में रैडक्लिफ के सेक्रेटरी क्रिस्टोफर बिओमोंट ने भी इस बाद की तक़सीद की थी. एक थियोरी ये है कि नेहरू से दोस्ती के चलते माउंटबेटन ने बंटवारे में भारत का थोड़ा पक्ष लिया था. लेकिन कारण इतना ही नहीं था. यहां पर एंट्री होती है जस्टिस महाजन की. हमने बताया था कि वो बाउंड्री कमीशन का हिस्सा थे. और भारत की तरफ़ से जिरह कर रहे थे.

गुरदासपुर और फ़िरोज़पुर के मामले में उन्होंने रैडक्लिफ के आगे दलील दी कि रावी को बाउंड्री बनाया जाना चाहिए. ताकि एक नेचुरल बाउंड्री बने. जस्टिस महाजन का गुरदासपुर से पुराना नाता रहा था. 4 साल यहां वकालत की थी. उन्होंने एक और दलील देते हुए कहा कि रावी कैनाल का निर्माण 40 हज़ार सिख फ़ौजियों ने किया था. इसलिए इसका पंजाब के सिखों से खास नाता है.

रैडक्लिफ को ये भी लग रहा था कि गुरदासपुर और फ़िरोज़पुर पाकिस्तान के हिस्से में चला गया, तो नक़्शे की सुंदरता बिगड़ जाएगी. उन्होंने जस्टिस महाजन के आगे दो ऑप्शन रखे. लाहौर या गुरदासपुर. जस्टिस महाजन ने गुरदासपुर और फ़िरोज़पुर को चुना. एक कारण ये कि श्रीनगर तक जाने का एक मात्र रास्ता गुरदासपुर से होकर जाता था. जिसके अहमियत अगले 4 महीने में सामने आ गई थी. दूसरा कारण था पंजाब तक सिंचाई नहरों का कंट्रोल, जिसका ऑपरेटिंग पोईंट फ़िरोज़पुर और गुरदासपुर में पड़ता था.

रानी ने जम्मू कश्मीर के प्रधानमंत्री पद का प्रस्ताव देते हुए जस्टिस महाजन से कहा कि हरी सिंह उनसे मिलना चाहते हैं. जस्टिस महाजन ने प्रधानमंत्री का पद ठुकरा दिया. तब हरी सिंह के बेटे कर्ण सिंह ने जस्टिस महाजन से पूछा, “क्या हमारा राज्य इतना छोटा है कि उसके प्रधानमंत्री का पद भी आपकी शान से छोटा है”.

ये सुनकर जस्टिस महाजन हरी सिंह से मिलने को तैयार हो गए. फिर उन्हें बाउंड्री कमीशन की ज़िम्मेदारी मिल गई और मुलाक़ात हो नहीं पाई. लेकिन कश्मीर का मुद्दा उनके मन पर जमा रहा. और जब गुरदासपुर का सवाल आया तो उन्होंने कश्मीर मसले को देखते हुए, वहां तक एक रास्ता खुला रखने की सोची.

और जब बारी आई पाकिस्तान के गुरदासपुर की और उसके उसके तहसीलों की को की श्रीनगर से भारत को जोड़ता तो उन्होंने अपने सभी दांव पेच लगाए और आखिरकार भारत में गुरदासपुर का विपय हुआ ।

Jaya Bhardwaj

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