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इंडिया में कई ऐसे भी क्रान्तिकारी थे जो हंसते हंसते शाहिद हो गए सिर्फ और सिर्फ अपने देश को आजाद देखने के लिए , कुछ के किस्मत में आजादी देखनी थी तो किसी के किस्मत में नहीं, उन्हीं में से एक झारखंड के एक ऐसे क्रान्तिकारी थे जिन्हें आज के पिडी भुलते ही जा रहे हैं लेकिन मेकर्स बुधु भगत की कहानी आने वाली फिल्म आरआरआर पार्ट 2 में अगर इनकी बहुदरी और हिम्मत कि कहानी को दिखाते हैं तो कहीं न कहीं ये लोगो को इंस्पायर भी करेगी और बताएगी की आजादी हमें कितनी मुश्किलों से मिली थी, आज़ादी के पीछे कितनों ने अपने जान का बलिदान दिया है तब जाकर हमें आज़ादी आज देखने मिली है। बुधु स्वतंत्रता संग्राम के नायक गुप्त तरीके से अपना योगदान देते रहे और देश को आजादी की राह पर ले जाने के लिए संघर्ष करते रहे। यही कारण था कि उनका यह संघर्ष और नामुमकिन सा लगने वाला उनका साहस इतिहास के पन्नों का हिस्सा नहीं बन सका था लेकिन हम आरआरआर मूवी के पार्ट 2 में उनके बारे में जान सकते हैं। आरआरआर मूवी के पार्ट वन में हमने देखा था कि किस तरह राम चरण ब्रिटिश के साथ ही रहकर उसे बरबाद करने पर लगे थे और बुधु की कहानी भी कुछ ऐसी थी।

झारखंड में कई ऐसे क्रांतिकारी जो बुधु को अपना भगवान मानते हैं क्योंकि ये आदिवासीयों के वो क्रांतिकारी थे जिन्होन बाकी आदिवासियों को उनकी पहचान दिलवायी थी. दरअसल, वे गुप्त तरीके से योगदान देते रहे और देश को आजादी की राह पर ले जाने के लिए संघर्ष करते रहे। यही कारण था कि उनका संघर्ष और साहस इतिहास के पन्नों का हिस्सा नहीं बन सका। गुमनामी के शिकार ऐसे नायकों में वीर शहीद बुधु भगत का नाम प्रमुख है। वीर बुधु भगत लरका और कोल विद्रोह के नायक थे। उन्होंने शोषण, दमन और अत्याचार का मुखर विद्रोह किया और जनजातीय समाज में राष्ट्रीय चेतना की स्थापना की। रांची जिले के चान्हो प्रखंड के अंतर्गत कोयल नदी के तट पर स्थित सिलागाई गांव में 17 फरवरी saal 1792 को एक उरांव किसान परिवार में जन्म लेने वाले बुधु भगत बचपन से ही तलवारबाजी और धनुर्विद्या का अभ्यास करते थे, कहा जाता है कि उन्हें दैवीय शक्तियां प्राप्त थीं, जिसके प्रतीकस्वरूप एक कुल्हाड़ी वह हमेशा साथ रखते थे। वीर बुधु भगत बचपन से ही जमींदारों और फिरंगी सेना की क्रूरता देखते आए थे। आदिवासी इलाकों में गोरी हुकूमत की चरम बर्बरता देख उनका स्वाभिमान जागा और वे स्वाधीनता की लड़ाई में कूद पड़े। वे सभी धर्मों व जाति के लोगों को संगठित कर फिरंगियों से लड़े और लोगो को उनसे लड़ना भी शिखाया था, उनका कहना था कि मर जाएंगे लेकिन अंग्रेजों के सामने झुकेंगे नहीं। इनकी कहानी बिलकुल आरआरआर की फीलिंग देती है कि कैसे इनहोने ब्रिटिश के साथ रह कर ही उसके खिलाफ काम किया था और उन्हें घुटनो के बल बैठने पर मजबूर कर दिया था। इस मूवी में अगर इनकी दोस्ती की एंगल को ढिखाया जाए कि कैसे बुधु अपने दोस्त के साथ मिलकर ब्रिटिश के छक्के छुड़ा दिया था तो लोगो को इनकी कहानी जितनी स्ट्रॉन्ग लगेगी उतनी इंटरेस्टिंग भी क्योंकि ये ऐसे शूरवीर में से थे जिन्होन अपनी पुरी जिंदगी, अपने लोग और देश के नाम समर्पित कर दिया था जो एक सच्चा देश भक्त ही कर सकता है।

साल 1831 में उन्होंने सिंहभूम क्षेत्र में कोल विद्रोह का नेतृत्व किया था, कोल विद्रोह सिर्फ आदिवासियों का विद्रोह नहीं था वह अंग्रेजों के विरुद्ध स्वतंत्रता का भी आंदोलन था। यह संगठित कोल विद्रोह रांची, सिंहभूम, हजारीबाग, पलामू तथा मानभूम के पश्चिमी क्षेत्रों में फैला। इस प्रकार 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के पहले ही बुधु भगत ने देश की आजादी का शंखनाद कर दिया था। उन्होंने अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए 1832 में लरका विद्रोह का नेतृत्व किया। यह आंदोलन सोनपुर, तमाड़ एवं बंदगांव के मुंडा मानकियों का आंदोलन न होकर छोटानागपुर की जनता का आंदोलन बन गया था। बुधु ने जंगल के बीच अपना एक डेरा बना रखा था वो चाहते थे कि हर घर में एक क्रांतिकारी का होना बहुत जरूरी था ताकि वो आजादी का सही मतलब समझ सके, इसलिए उन्होंने घर घर से एक क्रान्तिकारी को अपने संगठन में शामिल किया और और उन्हें इस तरह तैयार किया जिस तरह आरआरआर फिल्म के पार्ट वन में जूनियर एनटीआर ने अपने साथियों को किया था ताकि वक्त आने पर वो अंग्रेजों को अच्छे से मजा चखा सके।

उधर लरका विद्रोह भयंकर रूप लेने लगा था वीर बुधु भगत ने अपने सहयोगियों के साथ फिरंगियों की चूलें हिला दी थी। उनके पराक्रम और कुशल नेतृत्व से फिरंगी घबराने लगे थे। इस विद्रोह को कुचलने के लिए फिरंगियों ने क्रूर तरीके भी अपनाए। बुधु भगत को पकड़ने के लिए फिरंगियों ने अपनी फौज को पूरे पहाड़ पर फैला रखा था। फिरंगी अच्छी तरह से जानते थे कि उनकी मृत्यु या गिरफ्तारी के बिना वह आंदोलन को दबा नहीं सकते। उन्हें पकड़ने के लिए उस दौर में 1000 रुपये इनाम की घोषणा भी की गई थी। परंतु कोई भी इस इनाम के लालच में आकर उन्हें पकड़वाने को तैयार नहीं था। बुधु भगत और उनके सहयोगी जंगल और पहाड़ियों से अंग्रेजी सेना पर तीर चलाकर गायब हो जाते। इससे परेशान होकर फिरंगियों को दानापुर, पटना और बैरकपुर से सेना बुलानी पड़ी थी। लेकिन शायद बुधु के नसीब में आजादी देखना नहीं लिखा था, साल 1832 में अंग्रेजों ने उन्हें घेर लिया था और वहीं उन्हें गोलियों से भुन कर मार दिया था। तो ये कहानी हो सकती है आने वाली फिल्म आरआरआरआर की, आपको ये कहानी कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताइएगा और तब तक आप अपना ध्यान रखिए और हमेशा मुस्कुराते रहीए ।

 

 

 

Chandan Pandit

 

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